आ रही हिमालय से पुकार है
उदधि गरजता बार बारप्राची पश्चिम भू नभ अपारसब पूछ रहे हैं दिग-दिगन्तवीरों का कैसा हो बसन्त।।
फूली सरसों ने दिया रंगमधु लेकर आ पहुँचा अनंगवधु वसुधा पुलकित अंग अंगहै वीर देश में किन्तु कन्त-वीरों का कैसा हो बसन्त।।भर रही कोकिला इधर तानमारू बाजे पर उधर गानहै रंग और रण का विधानमिलने को आए हैं आदि अन्त-वीरों का कैसा हो बसन्त।।गलबांहें हों या हो कृपाणचलचितवन हो या धनुषबाणहो रसविलास या दलितत्राणअब यही समस्या है दुरन्त-वीरों का कैसा हो बसन्त।।कह दे अतीत अब मौन त्यागलंके तुझमें क्यों लगी आगऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जागबतला अपने अनुभव अनन्त-वीरों का कैसा हो बसन्त।।हल्दीघाटी के शिला खण्डऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचण्डराणा ताना का कर घमण्डदो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलन्त-वीरों का कैसा हो बसन्त।।भूषण अथवा कवि चन्द नहींबिजली भर दे वह छन्द नहींहै कलम बंधी स्वच्छन्द नहींफिर हमें बताए कौन हन्त-वीरों का कैसा हो बसन्त।।
सुभद्रा कुमारी चौहान
वीरों का कैसा हो बसन्त
सरस्वती वंदना - हे हंसवाहिनी ज्ञानदायनी
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायनी 
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे॥1॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें
हम मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा माँ,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥2॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे॥1॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें
हम मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा माँ,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥2॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
सरस्वती वंदना - तू वर दे, तुझे पायें
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तू स्वर रागिनी,
तू हँस वाहिनी,
तू शांत-सहज-सरल,
तू सुंदर-विनम्र-निर्मल,
तू विचारणीय,
तू स्मरणीय,
तू पूजनीय,
तू वंदनीय,
तू करती पवित्रता से श्रृंगार,
तू शोभे पहन श्वेत परिधान,
तू द्वेष मुक्त,
तू क्लेश मुक्त,
तू कला युक्त,
तू ज्ञान युक्त,
तू करे तम सँहार,
तू ही लक्ष्य,
तू जीवन-सार,
तू हमें सर्वदा भायें,
तू वर दे, तुझे पायें....................................
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